kanchan singla

Add To collaction

शहादत वीरों की..!!

है, युद्ध की एक कहानी ये
वीरों की जुबानी है 
जिसे जीता था वीरों ने
पराक्रम और प्रतिष्ठा से
खून से और बलिदानों से
यह जो दिन था, खुशी और गम का
कारगिल युद्ध की जीत का
वीर जवानों की शहादत का।। 

हर आंख थी नम
दिल गर्वित भी था
देख साहस वीरों का
हर नजर में सजदा था
ना कोई खुशी मना सका
ना गम भुलाया जाता था
भारत मां के वीर सपूतों को
खो देने का गम हर दिल में समाया था।।

गर्व से तिरंगा लहराया था
तिरंगे में लिपटा कर
वीर सपूतों को 
उनकी जननी को सौंपा था
यह सिर्फ उसके ही लाल नहीं
मां भारती के बेटे थे
नम आंखों से मां ने देख बेटे को
गर्व से सर उठाया था
अपने शब्दों में उसने एक वाक्य दोहराया था
इस मिट्टी की रक्षा की खातिर
सौंप दूंगी अपना हर बेटा
गर शहादत ही उसकी किस्मत है
तब मैं ना बनूंगी बाधा ।।

वो एक बहन थी जो हर बार राखी भेजा करती थी
इस राखी उम्मीद में थी
शायद बांध पाएगी धागा वो अपने हाथों से
उन हाथों पर जो रक्षक हैं इस देश की मिट्टी के
इस राखी भाई लौटा भी पर फिर कभी ना लौटने को
देख आंगन में लेटे, तिरंगे में लिपटे उस भाई को
राखी का रेशम का धागा उसके हाथों से छूट गया
भाई भाई पुकार चिल्लाई वो
ना इस बार उठा वो, ना राखी बंधी 
देख उस बहन की हालत को हर बहन रोई थी
आंखो में जितनी नमी थी, दिल में उतना ही गौरव था
सन्नाटे को चीरती सांसों पर आंसुओं का पहरा था।।

वो एक पत्नी थी
जो टूटे मंगलसूत्र के दानों को बिन रही थी
किसी अनहोनी की आशंका में
वो नन्हीं बच्ची आंगन में खेल रही थी गुड़िया से
जिसे ना था भान जीवन का
वो एक छोटा सा समझदार सा लड़का था
पढ़ लिखकर पिता के नक्शे कदम पर चलना चाहता था
सुन घंटी की आवाज वो दौड़ा चला दरवाजा खोलने को
अजनबियों को देख सहम कर हट गया पीछे को
रसोई घर से दौड़कर आती हुई वो ठिठक गई कोने में
ज्यों ही आगे बढ़ी पायल छनक कर टूट गई
रो रो कर पूछती रही तुम क्यों आए हो..??
आना था जिनको, उनको क्यों नहीं लाए हो...??
सर झुका लिया सबने ना था कोई उत्तर
तिरंगे को हटा हल्का सा चेहरा दिखा दिया
उसके आखों के आगे गहरा अंधियारा छा गया
टूटती उसकी हर चूड़ी पूछती एक सवाल थी
वो वादे क्यों भूल गए मुझे अकेला क्यों छोड़ गए ?
बेटा बैठा कोने में सब समझ रहा था वो
किससे कहता पीड़ा अपने दिल की
सब ही तो गम में डूबे थे
नन्हीं सी बहन का हाथ उसने पकड़ा था
अहसास ना होते हुए भी वो रोती जाती थी
उसकी चीखों का शोर,
वहां फैले सन्नाटे को चीर रहा था
जैसे तैसे ढांढस बांधे थे जो
संभाले संभले नहीं जाते थे।।

फिर आया वह अंतिम क्षण था
यह वीरो की विदाई का पल था
वीरों के सम्मान में राष्ट्रगान बजाया था
बंदूक की उन आवाजों से आकाश गूंजा था 
अब वह वक्त आया था जब उन
नन्हें हाथों को अग्नि रस्म को पूरा करना था
सबने सम्मान से सर उठाया था
आखों के कोरो से दो बूंदों को गिराया था।।



लेखिका- कंचन सिंगला
लेखनी प्रतियोगिता -27-Jul-2022
#23rd कारगिल विजय दिवस 🙏
देश के शहीदों को श्रद्धांजलि 🙏
जय भारत मां 🙏🇮🇳

   27
14 Comments

Aniya Rahman

27-Jul-2022 10:31 PM

Nyc

Reply

Khushbu

27-Jul-2022 07:18 PM

V nice

Reply

Reyaan

27-Jul-2022 06:13 PM

शानदार

Reply